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kal tak

कल पत्थर की तरह था में परसों था लोहे की तरह कल धुल की तरह हो जाऊ परसों धागे की तरह हो जाऊ रुई के गुण गाऊ ! अगले महीने आटे की तरह साल भर बाद पानी की तरह आगे हवा की तरह हो जाऊ फिर आग की तरह हो जाऊ धधक कर ज़लू- जलाऊ  बहुत पहले खेत की तरह हो गया में   कभी आकाश की तरह फैल जाऊ बदल बन जाऊ उमड़ घुमड़ कर गरज बरस जाऊ रोज़ रोज़ हर पल उगता ढलता जा रहा हु जितना चलता जा रहा हु उतना बदलता जा रहा हु !