Mehfil
बड़ी शिद्दत से एक अनुभव सबसे साँझा करने का मन कर रहा है....अनुभव कहू या सवाल....ठीक
ठीक कुछ तेय नहीं कर पाती....हैरान इस बात से भी हू की जिन्दगी बार बार मुझे ही इतने
मौके क्यों देती है अपनी असल झलक दिखाने की या शायद में ही बातो को गौर से सुनने
की आदत बना चुकी हू......तो हुआ ये की एक महफ़िल में बैठने का मौका मिला.....गुफ्तुगू
कुछ यू चली की एक ऊची जाति की लड़की ने अपनी पसंद से एक नीच जाति के लड़के से शादी
कर ली......जिनकी लड़की थी, उस रिश्तेदार ने बहुत गर्व से बताया की उनके घर के छोटे
बच्चे के पूछने पर की, “वो दीदी अब घर क्यों नहीं आती”, पहले तो उन्होंने उससे
गुमराह किया की ऐसी कोई लड़की कभी खानदान में थी ही नहीं...ज़रूर वो किसी और की शकल
से धोखा खा रहा है....छोटे बच्चे ने जब पुरानी एल्बम निकाल के अपनी बात को दुबारा
कहना चाहा तो उसे बताया गया की वो लड़की तो मर गयी......और इस तरह एक जिंदा इंसान
का वजूद अगली पीढ़ी के लिए खतम कर दिया गया......गलती क्या.....गलती सिर्फ इतनी की
एक लड़की ने कैसे हिमाकत की, अपना फैसला लेने की और लेके उससे लागू करने की......और
अंततः उस महफ़िल में बैठी लगभग सभी लोगो ने एक आह भरके कहा की, “ऐसा कहने के अलावा
और चारा भी क्या रह जाता है अगर एक लड़की इस हद तक आगे निकल जाये”.......मेरे आँखों
के सामने वो तस्वीरे कौंध गयी जब वो ही लड़की सबकी आँखों का तारा हुआ करती
थी......में सच में इस इन्सेन्सितिविटी को समझ नहीं पायी.........सवाल मन में ये
जागा की इसी महफ़िल में अगर हालात बदल जाये और एक ऊची जाति का लड़का अगर नीची जाति
की लड़की से शादी कर ले तो यही उसके अपने लोग क्या फिर अपनी अगली पीढ़ी के लिए कह
पाएंगे की ऐसा कोई लड़का खानदान में था ही नहीं और अगर था तो अब मर गया......क्या इतनी
ही साफगोई से ऐसा ही कोई झूठ गडा
जायेगा......शायद नहीं.........!!!!!!!!
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