kya kahu....
कई बार मुझे लगता है मेरी बदकिस्मती मेरी किस्मत से दो कदम आगे चलती है....हर बार जब ये लगता है अब कुछ अच्छा होगा तभी ख़ुशी कुछ और कदम , और आगे खिसक जाती है...ऐसा क्यों होता है मेरे साथ..कभी कभी मन बहुत उदास हो जाता है...पर फिर में खुद से कहती हु की कोई तो दिन मेरा होगा न जब सब कुछ वो होगा जैसा मैंने चाहा था....उम्मीद और नाउम्मीद के बीच झूलती में कभी कभी भीड़ के बीच भी खुदको बहुत अकेला पाती हु...
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ki mere sath hazaron honge
jab main jeet jaungi
par
tab mujhe unki zarurat nhi hogi